Tuesday, March 11, 2014 | By: Unknown

सियासतें तेरी

झूलकर अधर में, पत्तों-सी, साँसें मेरी
इधर-उधर हैं बहती ।
ढहाता है तू सितम क्युं, नजरें फेरकर
सियासतें तेरी खत्म नहीं होती ।।

Ravi Sisodia 'Pankh'


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