झूलकर अधर में, पत्तों-सी, साँसें मेरी
इधर-उधर हैं बहती ।
ढहाता है तू सितम क्युं, नजरें फेरकर
सियासतें तेरी खत्म नहीं होती ।।
- Ravi Sisodia 'Pankh'
इधर-उधर हैं बहती ।
ढहाता है तू सितम क्युं, नजरें फेरकर
सियासतें तेरी खत्म नहीं होती ।।
- Ravi Sisodia 'Pankh'

1 comments:
Excellent post
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