झूलकर अधर में, पत्तों-सी, साँसें मेरी
इधर-उधर हैं बहती ।
ढहाता है तू सितम क्युं, नजरें फेरकर
सियासतें तेरी खत्म नहीं होती ।।
- Ravi Sisodia 'Pankh'
इधर-उधर हैं बहती ।
ढहाता है तू सितम क्युं, नजरें फेरकर
सियासतें तेरी खत्म नहीं होती ।।
- Ravi Sisodia 'Pankh'

- Follow Me on Twitter!
- "Join Us on Facebook!
- RSS
Contact