सागर के सिहराने हूँ बैठा
तन्हा-तन्हा, सहमा-सहमा
भीतर तक अपने में ही सिमटा
और अतीत कुछ अपने दोहराता ।
वो सांझ की लाली, वो सूरज का जगना ।
वो रजनी काली, वो दिनभर तपना ।
तेरी ही हसरत, तेरे ही ख्वाबों में
खोया-खोया रहना
उनमें तेरा ही बस जिक्र होना ।
तेरे कदमों की आहट
तेरे कंगना की खनखनाहट
तेरी पायल की झनकार
तेरी नज़रों का झूठा-सा इनकार
यूं छा जाता है, अब भी, नशे-सा
मन पर, स्मॄति-तन पर ।
कुछ खुमार रहता था
पल हर पल बेकरार रहता था
कुछ करना होता था
बेख्याली में कुछ और ही करता था
जन्नतें, आसमा के परे ले जाता था
महज़ तेरा, इक ख्याल भर ।।
- Ravi Sisodia 'Pankh'
2 comments:
Beautiful Poem Bro!
Thanks MS Mahawar ...
Ravi Sisodia
'I'm Born to Shine'
http://ravikavisisodia.blogspot.in/
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